भील लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
खेड़ि-खड़ि काइ रेते कर्या।
खेड़ि-खड़ि काइ रेते कर्या।
जड़ि गुयो मेहंदी नो बीज।
हात रंग्या पाय रंग्या।
जड़ि गुयो मेहंदी नो बीज।
रंग चुवे।
- हे बनी! जमीन मंे हल चलाकर, मेहंदी का बीज ढूँढा। बीज बोया, तब जाकर मेहंदी का पौधा तैयार हुआ। वही मेहंदी हमने तेरे हाथ-पैर में लगा दी है। देखो! मेहंदी का रंग कैसे खिल रहा है?