पीव-बिजोगण झूरै, हरखै-घरां संजोगण नार।
बीज-बादळा घणा डरावै, बरसै मुसळ-धार।
रातां मेह-अंधेरी।
जंगहधर नै जाणै-लळ री परलै घेरी।।81।।
जळहर बूठण-ब्याज जतावै-बिरहणियां री बाण।
झिरमिर झरियां-नैण झुरंता, गरजण मिस कळ-गाण,
समपै बिरह-संदेसा।
दमकण मिस दरसावै-उझकण-भाव अंदेसा।।82।।
धीरां-धीरां ओ धाराधर, गजबी मधरो गाज!
बिरहणियां डरपैली बैरी, सुण-सुण सखरो साज!
धमकां धूजै धोरा।
कुरळावैला मोर‘क-चिमक मरेला छोय’रा।।83।।
दामणिायां धप-धप मत दीपो, रळमिळ मांझळ रात!
सुपनै मिस बिरहणियां सूती-उझकै इण उतपात।
सिलगै मांग सिंदूरी।
पळकां जोत-पळाकां-उचटै नींद अधूरी।।84।।
आ कुण आज अटकळै ओ’ला, इण बेळा इकलाण ?
परकीया सी मन री गति पर-पथ री करै पिछाण,
निरखै बीज-निजारा।
सोपो सुपनां सरसै, अग-जग-मेह अंधारा।।85।।
जळ-थळ, थल-जळ, अंबर-जळहर, सजळो सकळ समीर।
जळ ही जळ, जळमय जगतीतळ, नैणां छळकै नीर।
हद अब मिलै न हेर्या।
बिरही जण बौराया, डूबै मन री डेर्यां।।86।।
आधी रैण जगावण आवो, बादळियां, किण बाग ?
छांटा-छिड़कै छेड़खानियां-फेरो बेरूत फाग।
छमकै-धमकै छातां।
उझके घर आंगणिया, रंग बिहूणी रातां।।87।।
पीवरिये री बादळी बरसै-सासरियो गिगनार।
प्रीत तणी पावस पुळकावै-कर सो’ळा सिणगार।
ऊंची गीरै मूमल।
घर-घर नार पदमणी, बस्ती-बस्ती सिंघल।।88।।
बिरखा रूत, बालम अलबेलो, भुवण-मोवणी नार
घंूघटिये में लाजै लजवण, निखरै रूप अपार।
मन में भाव-झकोरा।
थिरकै प्राण-पपैयो, छळकै नैण-कटोरा।।89।।
खरी कमाई खावै सबळा, बीरां री संतान।
राज मरगां बगती ओपै-सकळ गुणां री खान।
पाणी ल्यावै भर-भर।
दोघड़ अधर उठायां-माथै ईंडूणी धर।।90।।