देख सावन को आल्हादित
जेठ में सूखे सतपुड़ा पर्वत्त
उड़ना चाहते स्वयं मेघ बन कर
कब तक रहें खड़े तनकर
तैयार हैं बहने को हो तरल
अठखेलियाँ बैनगंगा सी करने को विकल
मेघ देख हुआ नव सृजन का संचार
पिघलकर कोंपले फेंकने को तैयार
कटते पेड़ उजड़ते जंगल
दूर करते जंगल में मंगल
हो सचेत दिखा कर्मठ वेग
पर्वत्त बने रहें सावन का मेघ
अन्यथा कहता रहेगा देख-देख
जंगल पर्वत्त हो जायेंगे वैशाख का मेघ