रीता घर सूना गलियारा
वन की तरु-राजि
बिसूर पियूर की
हवा की थकी साँस :
मेघ एक भटका-सा
दो बूँदें टपका जाता है।
ऐसे ही टुकड़ों में सहसा
गँठ जाते हैं महाकाव्य
व्याकुल प्रेत-व्यथा
सब-कुछ से सब-कुछ ही बिछुड़न की
एक आह हीरक में शिलीभूत!
बिनसर, 19 जून, 1981