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मेघ बनकर / पद्मजा बाजपेयी

तृषित धरती के कणों को, तृप्त कर दो, मेघ बनकर
अग्नि से जलते तनों को, शान्ति दो, तुम प्रेम बनकर,
भटकते राही को, गंतव्य दे दो मीत बनकर।
कालिमा मिट जाएगी, यदि तुम जलोगे, दीप बनकर,
डूबती नौका बचा लो, हाथ का अवलम्ब देकर,
छद्म का पर्दा उठा दो, सत्य की प्रतिमूर्ति बनकर,
टूटते सम्बन्ध जोड़ो, विश्वास की अनुभूति देकर
ज्योति को फिर से जला दो, भावना के अनुरूप बनकर।