आज उड़ा मेरा आंचल।
कितनी कलियां खिलीं आज
बरसे फिर-फिर कितने बादल।
मैं भी हूं मृदु सावन भी है
भीगी चोली दामन भी है
मन के गलियारे में कोई
झांक रहा साजन भी है
इठलाती योवन की मस्ती
इतराता आंखों का काजल।
आज उड़ा मेरा आंचल।
भटके पग मग लचके अंग-अंग
अभिसारित से मदहोश दृग
छोड़ी सीमा तोड़े बंधन
उन्मुक्त उड़ी मन की पतंग
भूली किसलय भी गति आज
छेड़े नवगीत मेरी पायल।
आज उड़ा मेरा आंचल।