मेरा कृत्य
मेरी जीवात्मा का निर्माता
बंधन का कारण भी
सत्व रज तम में स्थित
मैं सुखःदुखादि कर्मो को भोगता
अनेक तत्वों से युक्त
नाना प्रकार की वृत्तियों में लिप्त
विचारों का पुलिंदा ही मानों
आत्मा का अचल ऊर्जा पाकर
स्वंय की स्वतन्त्र सत्ता समझ बैठा
अतः मोक्ष का द्वार सील बंद है
मेरा कृत्य
नित-नूतन सर्जन कर
क्रियाशील कर
संताप हर धर्म धर
धरती में छूपे दरिद्र कण दूर कर
क्षुद्र स्वार्थ का शमन करें
त्याग निष्ठा समभाव ही सुखसागर
मांज ले अन्तः को
जो आधार स्थल है
मुक्त होगा ही
वह जांच ले पहले मुझ स्वयं को
बतलादे मैं कैसा निर्मित हो रहा हूं !