मैंने सुई से खोदी जमीन
‘फुलकारियां’ उगाई दुपट्टों पर
मैंने दीवारों में रचे ‘ताख़’ दीवट वाले
मैंने दरवाज़ों को दी राह बंदनवार वाली
मैंने आग पर पकाया स्वाद
अंजुरी में भरा तालाब
मैंने कमरों को दी बुहार
मैंने नवजीवन को दी पुकार
मैंने सहेजा
उमरदराज़ों को उनकी अंतिम सांस तक
मैंने सुरों को भी छेड़ा बांस तक
मेरे पसीने से बहा यश का गान
पर
मेरे घर पर लिखा तुम्हरा नाम...!