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मेरा घोड़ा / योगेन्द्र दत्त शर्मा

मेरा घोड़ा
बड़ा निगोड़ा
फिरता दौड़ा-दौड़ा,
सरपट चलता
नहीं मचलता
खाता कभी न कोड़ा!

कुल्लू घाटी
या चौपाटी
शिमला या अल्मोड़ा,
छोटा-मोटा
अच्छा-खोटा
शहर न इसने छोड़ा!

इसके आगे
झंझट भागे
टिका न कोई रोड़ा,
आसमान से
हर मचान से
है धरती को जोड़ा!
इसने डटकर
हर मौके पर
बाधाओं को तोड़ा,
चेतक बनकर
पथ पर तनकर
इतिहासों को मोड़ा!