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मेरा देश कहाँ है / नित्यानंद गायेन

दरअसल यह हत्याओं का दौर है
पड़ोस में तालिबान, अलक़ायदा और जैश-ए...जैसे संगठन हैं
तो कुछ और दूरी पर है ..काले झण्डे वाले आइएसआइएस
इन सबका बाप लोकतन्त्र की दुहाई देने वाला अमेरिका है
सब जानते हैं।
पर सच यह भी है कि मेरे देश में हत्याओं के इस दौर को मिला है
इक नया नाम — आत्महत्या !
किसान की हत्या बदल जाती है आत्महत्या में,
उसी तरह ग़रीब, शोषित और दलित को मज़बूर किया जा रहा है
आत्महत्या के लिए ...
ताकि हत्या के आरोप से बच जाएँ वे
खाप को उपयोगी बताया गया है समाज के लिए एक मुख्यमन्त्री द्वारा
उससे पहले एक वजीर ने कहा था —
लोग तो मरते रहते हैं
गायें बचनी चाहिए !
पुलिस ने पहन ली है ख़ाकी निकर
तिरंगा फहराया गया है
संसद भवन के ऊपर
जय भारत भाग्य विधाता के नारे लगे ज़ोर से
मैंने पूछा — कहाँ गया मेरा देश !
मुझे गद्दार कहा गया ..
गालियाँ दी मेरी माँ को
कि उसने जनम दिया एक गद्दार को
मैंने कहा —
मैं कवि हूँ ...
हँसते हुए उन्होंने कहा ...चुप रह चूतिए !
राजा के विरुद्ध लिखेगा ...तो देश निकाला जाएगा।
वैसे सच बताओ ...
क्या यह मेरा ही देश है
जिसे मैंने इतिहास और भूगोल की किताबों में पढ़ा था !