मेरा प्रेम वैसा ही है
जैसा पानी का रंग
मेरी घृणा वैसी ही है
जैसी तेजाब की गन्ध
मैं प्रेम को प्रेम करता हूँ
और घृणा को घृणा
मैं वैसी चीज़ों की तलाश करता हूँ
जिनकी शक्ल में
पानी का रंग घुला होता है
वैसी छाँह की तलाश करता हूँ
जो धूप की भयावह शक्ल से
बचाती है मनुष्य को
मेरी पूरी तलाश एक मनुष्य की है
मनुष्य की एक भरपूर पहचान लिए
मैं जाता हूँ जहाँ भी
लड़ता हूँ अन्धेरों से
पशुता से
करता हूँ सामना
मैं जाता हूँ जहाँ भी
खिलखिलाता हूँ, ख़ुश होता हूँ
देखता हूँ फूलों को, भौरों को
चिड़ियों को, वृक्षों को, बच्चों को
यहाँ
इस जगह
प्रेम की एक नदी उग आती है मेरे अन्दर
न जाने किस तरह
घृणा और प्रेम के बीच जी रहा हूँ मैं
मैं जी रहा हूँ
दुर्गन्ध और ख़ुशबू के बीच
दुर्गन्ध और ख़ुशबू के द्वन्द्व को
जी रहा हूँ मैं
क्योंकि मैं
प्रेम को प्रेम करता हूँ
और घृणा को घृणा