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मेरा बिस्तर / मनोज कुमार झा

तकिए में रूई नहीं फटे हुए कपड़े, अंतर्वस्त्र तक
चादर पर एक बड़ी सुन्दर चिडि़या थी, जहाँ डैने थे वहीं फट गई
तख्त के चौथे पाए की जगह ईंटें हैं
नीचे एक कनटूटी प्याली है माँज सकूँ तो चमकती है
हैमलेट की एक पुरानी कॉपी है जिसके नोट्स फट गए
अधसोई देह की फड़फड़ाहट के निशान हैं
यह किसका बिस्तर है
जिस पर मेरी रात की आँख से पिघला शीशा चूता है ।