मैं तुम्हें एक खिड़की सौंपता हूं तारों भरी
मैं तुम्हें आकाश इंद्रधनुष नदीतट तैरतीं मछलियां
मैं तुम्हें आवारा और श्री चार सौ बीस के गाने सौंपता हूं
अदृश्य नहीं दृश्य सौंपता हूं हर बार
और कोमलतम संसार सौंपता हूं सार्थक
वृक्षों पर छाए अंधेरे के लिए
पहाड़ पर की धूप
तुम अपने ख़्वाबों के अफसाने सुना सको
इसके लिए परियां बाघ रहस्य सौंपता हूं
और बचा सको अपने हिस्से के वसंत को
इसके लिए इक हसरते-ताबीर सौंपता हूं
तुम्हारे पीछे छूटते जा रहे बिंबों को
संभाले रखने के लिए कुम्हार का चका
तुम्हारे इर्द-गिर्द के एकांत को भगाने के लिए
अपनी सारी शायरी सारी नज़्में अपने सारे अफसाने
तुम्हारी उदासी को भगाने के लिए
बढ़ई का रंदा सौंपता हूं बहुमूल्य
और अपने दुखों से उबरने के लिए बुद्ध सौंपता हूं
मेरा सौंपा हुआ रहेगा यहीं कुम्हार और बढ़ई के घरों में
जो बचाए रखेगा
कुम्हार का चका
बढ़ई का रंदा
वन और बाघ
जो बचाए रखेगा
तुम्हारा आकाश
तुम्हारा समय
तुम्हारा वितान
बचाए रखेगा उसे भी बचाए रखने की सारी विधियों के साथ
जो तुम्हारे भीतर फूटने के लिए दरअस्ल बेचैन है
किसी भाषा की तरह किसी कोंपल की तरह
और लांघ लेना चाहता है पौ फटने के वक्त तक को।