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मेरा होना बना रहेगा / प्रताप सहगल

अब आप मुझे बाहर नहीं कर सकते
मैं न रहूँगा
आपके कमरे में
एक किताब बनकर
आपकी मेज़ पर सोया रहूँगा
या आपकी
गाड़ी की पिछली सीट पर
सेंकता रहूँगा
सर्दियों की धूप
और सुनता रहूँगा
आपकी बातें
या कोई ग़ज़ल
या
कोई संगीत की तान
नहीं सुनूँगा ख़बरें
वे तब भी वही होंगी
जो आज हैं
पर सुनूँगा ज़रूर
आपकी बातें
बोलूँगा ज़रूर
आपकी ज़बान पर चढ़कर
आप चाहें भी तो
अपनी ज़बान से
नहीं फेंक सकेंगे
गाड़ी से बाहर
सुनेंगे मेरी बातें
अपनी साँसों के साथ
अब आप मुझे कैसे कर सकते हैं बाहर
अपनी दुनिया से!