मेरी गली में जब भी हवा चलती थी ,
धूल-ही-धूल उड़ा करती थी,
पक्की सड़क कचची बन गई थी,
एक दिन ........,
अचानक एक ऐसी बही
कि..........
धूलों का उड़ना बन्द हो गया
लैम्पपोस्टों की बुझी हुईं बत्तियाँ
फिर जलने लगीं
और उनके उजाले में
चमचमाती गाड़ियों का
आना-जाना शुरू हो गया।
गाड़ियों की रोशनी की चकाचौंध
से कई-कई चहरे उतरकर
हर दरवाज़े पर दस्तक देने लगते हैं।
जब भी ऐसी हवा चलती है
ये चेहरे आते हैं
य़े हमें वादों के गुलदस्ता थमाते हैं
और हम इनके नामों की बगल में
अपने भाग्य की रेखा खींच जाते हैं।
फिर..........
घीरे-धीरे यह हवा बहनी बंद हो जाती है
और मेरी गली अंधेरों में खो-खो जाती है।