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मेरी ग़ज़ल भी रही इस तरह ज़माने में / मधुरिमा सिंह

मेरी ग़ज़ल भी रही इस तरह ज़माने में,
फ़कीर जैसे हो पीरो के आस्ताने में ।

ये और बात कि अहसास खा गया धोखा,
तुम्हारी याद थी शामिल तुम्हे भुलाने में ।

इस एहतियात से मैंने कहें हैं सारे शेर,
तुम्हारा नाम न पढ़ ले कोई ज़माने में ।

सिवाय इसके कि अपनी ख़बर नहीं उसको,
न पाई कोई कमी आपके दिवाने में ।

तेरी किताब में वो इक वरक जो सादा है,
मेरा वजूद है उतना तेरे फ़साने में ।