मै अपनी भाषा की मांस-मज्जा में गले तक डूबी हुई थी|
और
तुम मुझे अपनी ओर खींचते चले जा रहे थे
भाषा के तंतु आपस में इस तरह गुंथे थे
जैसे प्रार्थना में एक हाथ की लकीरें दूसरे
हाथ की लकीरों
से अपना मिलान करती हैं
मेरी भाषा का अपना संकोच था
अपना व्याकरण
और इसी गणित के गुरूर की एक व्यापक समझ थी
उसने ही तुम्हारी भाषा के
नजदीक करतबी कलाबाजियाँ खाने से इनकार कर दिया था
अपनी भाषा में जमे रह कर तुम्हे प्रेम किया
मेरे प्रेम की एक-एक भाव भंगिमाएं
आत्मा के शीतल पानी में नहाई हुई थीं
कहीं कोई दाग-धब्बा ना रह जाये इस शक की सफाई में
मेरा प्रेम
बार-बार आत्मा की गहराई में डुबकी लगाता था
तुम प्रेम-आत्मा की इस अनोखी जल-क्रीड़ा से बाहर खड़े थे
पूरे के पूरे सूखे के सूखे
ऐसा नहीं था कि तुम्हे आत्मा और गहराइयों से परहेज था
फिर भी पुरुष का मान
पुरुष का मान होता है
और यह भी कि एक पुरुष होना नकारात्मक संज्ञा नहीं है
एक प्रेम पगी आत्मा तो तुम्हारे पास भी थी
जिसके पास कोई अनचीन्ही भाषा थी
जो प्रेम के सार्वभौमिक व्याकरण को नहीं समझ पाई थी
अब रहने दो
इससे ज्यादा सफाई
और ज्यादा कूड़ा बिखेर देगी
हर भाषा का अपना सम्मान होना चाहिए
और मैं अपनी भाषा की थाह रखूंगी,
तुम अपनी
इस कविता का अंत मैं किसी सन्देश से नहीं करना चाहती
इसका झुकाव उस
चित्रकार की तरह का जज्बा वाला होना चाहिए
जिसकी कूची ने कभी थकान का मुंह नहीं देखा था
उस फिल्मकार की तरह जो एक नायिका को
शरीर नहीं एक आत्मा मानता था
उन फिजाओं की तरह बेलौस
जिसकी आबोहवा में
पसीने की गंध फूलों की गंध को काटने का साहस रखती है
फिर भी दोनों की गंधिली भाषा अपनी-अपनी जगह महफूज रहती है