मेरी थकी हुई आँखों को किसी ओर तो ज्योति दिखा दो- कुज्झटिका के किसी रन्ध्र से ही लघु रूप-किरण चमका दो। अनचीती ही रहे बाँसुरी, साँस फूँक दो चाहे उन्मन- मेरे सूखे प्राण-दीप में एक बूँद तो रस बरसा दो! दिल्ली, 5 मार्च, 1943