देवताओं ने अधूरी सृष्टि बनाई
वे पूजनीय कहलाए
और चले गए रहने के लिए स्वर्ग
तुमने गलती और सड़ती हुई दुनिया को
सींच खून-ओ-पसीने से बनाया स्वर्ग
कहलाए मज़दूर-जाहिल-असभ्य
तुम्हारे रहने के लिए नहीं रखी गयी कोई जगह
सिर्फ़ भूख से मर सकते थे तुम
और जो हम सभ्य थे तुम्हारे लिए बस इतना किया
कि तुम्हें धीरे-धीरे मरते हुए देखते रहे
सुसंस्कृत-शालीन आँखों से
और फिर इक रोज़ तुम्हारे मरते ही
तुम्हारे बच्चों को बना लाए मज़दूर