मेरी प्रान-सजीवन राधा।
कब तो बदन सुधाधर दरसै यों अँखियन हरै बाधा॥
ठमकि ठमकि लरिकौहीं चालन आव सामुहे मेरे।
रस के वचन पियूष पोप के कर गहि बैठहु मेरे॥
रहसि रंग की भरी उमंगनि ले चल संग लगाय।
निभृत नवल निकुंज विनोदन विलसत सुख-दरसाय॥
रंगमहल संकेत जुगल कै टहलिन करतु सहेली।
आज्ञा लहौं रहौं लहँ तटपर बोलत प्रेम-पहेली॥
मन-मंजरो जु कीनन्हों किंकरि अपनावहु किन बेग।
सुन्दरकंवरि स्वामिनी राधा हित की हरौ उदेग॥