मैंने अपने जीवन में समाज के साथ तीन समझौते किए हैं। समाज के साथ मेरा पहला समझौता एक चिकित्सक के रूप में था, दूसरा सैनिक के रूप में तीसरा राजनयिक के रूप में। समाज के साथ मेरे तीनों समझौते अभिव्यक्ति की मर्यादाओं से बँधे हैं। समाज में केवल कवि एक ऐसा व्यक्ति है, जो अभिव्यक्ति के माध्यम से समाज से जो कुछ पाता है, वह समाज को वापस लौटाता है। ‘समय, सपना और तुम’ में संकलित मेरी कविताएँ समाज के प्रति मेरी प्रतिक्रियाएँ हैं।
इस संकलन की कविता ‘समय’ मेरी प्रिय कविता है। ‘समय’ के विषय पर अनेक कविताएँ लिखी गई हैं। उदाहरण के तौर पर टी.एस. इलियट की कविताओं ‘फोर क्वार्टेट्स’ और ‘प्रूफ़ौक’ में समय का बहुत अच्छा चित्रण किया गया है। मेरी कविता ‘समय’ अनायास ही हो गई। समय एक अविराम कविता है और कवि समय के निर्बाध प्रवाह में एक अर्धविराम भर है, जो शब्दों को स्याही में सँजोकर पाठक या श्रोता को प्रस्तुत करता है। भारत उन गिने-चुने देशों में से एक है, जो एक साथ बीस अलग-अलग सदियों में रह रहा है। इन कविताओं में भारतीय सभ्यता का ही अनूठापन समाहित है। इस संकलन को प्रस्तुत करने में मेरे कई मित्रों ने मुझे सहयोग दिया और उनका उल्लेख यहाँ करना अत्यंत आवश्यक है। मैं सुश्री कामना प्रसाद, नमिता भाटिया, डॉ. रेशमा हिंगोरानी का विशेष आभार व्यक्त करना चाहता हूँ, जिन्होंने अंतरताने व जगह-जगह बिखरे स्मृति के पन्नों को संकलित करने में मेरी सहायता की।