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मेरी माँ का स्वप्न / गोविन्द माथुर

हर माँ का एक स्वप्न होता है

मेरी माँ भी एक माँ थी

उसका भी एक स्वप्न था


हर बेटा अपनी माँ की

आँख का तारा होता है

भविष्य का सहारा होता है

मेरे भी चिकने पात थे


मेरी माँ का स्वप्न था

मैं ओहदेदार बनूंगा

समाज में प्रतिष्ठित

और इज्ज़तदार बनूंगा

एक बंगले और कार का

हक़दार बनूंगा


मा¡ का ये स्वप्न

न जाने कब

मेरा स्वप्न बन गया

मुझे न जाने क्यों

भाग्यशाली होने का

भ्रम हो गया


जब माँ की साधना से

ओहदा पाने लायक हो गया

ओहदा ही कहीं खो गया

कुछ दिन जूते घिस कर

अपने भ्रम से निकल कर

किसी ओहदेदार का

अहलकार हो गया


मेरी माँ का विश्वास टूट गया

उसका ईश्वर रूठ गया

मैं बूढ़ी माँ की बातों से खीजता था

आक्रोश से मुट्ठियाँ भींचता था


एक दिन माँ ने आँखे बन्द कर ली

माँ का स्वप्न भी

बन्द आँखो में मर गया

मैं ख़ुश था माँ के स्वप्न के मरने से

फिर मुझे लेकर

किसी ने स्वप्न नही देखा

मैने भी नही देखा