दीये-सा टिमटिमा रहा है
मेरे अँधेरों में
बूँद-सा झिलमिला रहा है
आँसुओं में इन दिनों
कंगन-सा खनक रहा है
मेरी हँसी में
बच्चे-सा खिलखिला रहा है
ख़ामोशियों में
कभी-कभी बुने सन्नाटा
मेरी ख़ुशियों में इन दिनों
मन से निकलकर
समा जाए मन में
होकर समझदार
जाने क्यों कर रहा है ऐसा
इन दिनों।