तुम्हारी जीत
हो सकती है
पर मेरा हारना नहीं है
कोई इत्तेफ़ाक,
हारना मेरा चुनाव है
बचपन में हारा साथ खेलने वालों से
स्कूल में ट्यूशन पढ़ने वाले साथियों से
घर में जब तक और कोई नहीं था तब तक माँ से ही हारता रहा
कभी कभार दिल भी हारा गाँव-गली में,
जरूरतों से हारकर बार-बार विस्थापित हुआ
मालिक से हारा
मकान मालिक से हारा
सरकार से हारा
चाटुकार से हारा
साहूकार से हारा
सच्चों से हारा
लुच्चों से हारा
बच्चों से हारा
मंहगाई से हारा
जग हंसाई से हारा ...
एक लंबा इतिहास है मेरे हारने का
तुम न भी जीतते
तो भी मैं हारता
बस फर्क यही है कि इस बार खुद को ही हार गया मैं...
क्योंकि जब तुम मिले
कुछ और नहीं बचा था मेरे पास सिवाय
मेरे अपने होने के अहसास के... !