मेरी है पहेली बात!
रात के झीने सितांचल-
से बिखर मोती बने जल,
स्वप्न पलकों में विचर झर
प्रात होते अश्रु केवल!
सजनि मैं उतनी करुण हूँ, करुण जितनी रात!
मुस्करा कर राग मधुमय
वह लुटाता पी तिमिर-विष,
आँसुओं का क्षार पी मैं
बाँटती नित स्नेह का रस!
सुभग में उतनी मधुर हूँ, मधुर जितना प्रात!
ताप-जर्जर विश्व-उर पर-
तूल से घन छा गये भर,
दु:ख से तप हो मृदुलतर
उमड़ता करुणाभरा उर!
सजनि मैं उतनी सजल जितनी सजल बरसात!