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मेरे अधरों ने गाये जो गीत तुम्हारे / मानोशी

मेरे अधरों ने गाये जो गीत तुम्हारे,
कई युगों के बिखरे सुर संगीत हो गए ।।

दो साँसों की ध्वनियों ने मिल कर बांधे सुर,
हृदयों के दो तार छिड़े गाने को आतुर,
कई समंदर पार क्षितिज में उठीं तरंगें ,
हुआ सृजित तब अनजाने ही राग इक मधुर,
थिरके दो मन एक साथ जब, अहम् खो गए ।।

आँखें पढ़ लेती हों जैसे मन की भाषा,
मौन कथाओ में छुपती विस्तृत परिभाषा,
लिखा हुआ प्रारब्ध कहीं कब बदल सका है,
फिर भी जलती रहती चिंगारी सी आशा,
लाँघ नियति के बन्ध, पथिक दो, एक हो गए ।।

मिश्रित से जो भाव संजोये दो हृद चंचल,
जीवन भर की संचित निधि वे स्मृतियों के पल,
हँसी-ख़ुशी के छंद बिखरते खिलखिल करते,
मन के इक कोने में पलते चिंतित से कल
पर निश्चय के आगे संशय कहीं खो गए||