मेरी मेज़ की दराज़ में
अब भी बन्द परे हैं
मेरे नाम लिखे तुम्हारे तमाम पत्र
गुल्लक में पड़े सिक्कों की तरह
सुरक्षित और चिर संचित ।
काश ! मैं इन्हें भेंट कर पाता
अग्नि की धधकती लपटोंको
तुम्हाते मनुहार-भरे आग्रह पर
पर अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद
मैं मना न सक अपने को
ऐसा कर गुज़रने के लिए ।
इन खतों में बन्द हैं
मेरे बीते हुए कल के अविस्मरणीय पल
मेरे अतीत के अनिवर्चनीय आनन्द ।
मैं अपने ज्वन के इस दुर्लभ लम्हों का
अपने पूरे होशोहवास में
गला घोंट नहीं पाऊंगा कभी
इन खतों को अग्नि की भेंट चढ़ाकर ।
प्रतीक्षा है मुझे
मन्थर गति से
अपने अतीत की स्वाभाविक मौत मरने की ।