मेरे पिता की तस्वीर आज कुछ काग़ज़ों में मिली।
यह उनकी एकमात्र तस्वीर है जो बची है।
पिता को तस्वीरें पसन्द नहीं थीं।
वे सभी निजी तस्वीरों को फाड़कर फेंक देते थे।
हमारे बचपन की जो थोड़ी-सी तस्वीरें थीं वे भी इसी तरह ही गईं।
तस्वीरें ही नहीं, वे घर की अन्य चीज़ें भी उठाकर ग़ायब कर देते थे।
उन्हें चीज़ों की भरमार अच्छी नहीं लगती थी।
उनके सारे कपड़े एक छोटे, काले ट्रँक में समा जाते थे।
वे छोटा-सा एक रेडियो भी रखते थे,
बढ़िया पेनों के शौक़ीन थे,
उर्दू का अख़बार पढ़ते थे।
उनकी बदौलत हमारा घर हल्का रहता था।
उनकी यह तस्वीर मैंने एक एलबम में रख ली है।
मेरे जाने के बाद इसे कोई नहीं देखेगा।