सुबह की धुंध में सोए और जागे
मेरे प्यारे देश!
न चाहने पर भी
लोग ज़बरदस्ती की भावनाएं भड़काते हैं
उत्तेजित करते हैं मेरी रगों को
15 अगस्त हो या 26 जनवरी
या कोई सिरफिरा चुनाव
सब ओर ढोल-ताशे
गीत, भजन, रैली,
सभाएं, नारे और जाने क्या-क्या
मैं ठसकता हूं
ये जबरिया बवाल
कितना ठूंसता होगा
मेरे भीतर तुम्हारी
नैसर्गिकता को
मेरे लिए प्रेम का
एक ही अर्थ है-
प्रेम करो और खो जाओ
नफ़रत, गर्व, श्रेष्ठता
मेरे मापदंड नहीं
मैं सिर्फ़ वही चाहता हूं
जो तुम चाहते हो
शांति और भरोसा
जैसे सब देशों के लिए
मेरे लिए चिली के समुद्र हों
स्पेन की धरती,
मेक्सिको की घाटियां,
दरवेश, नाजिम का वतन,
अफ्रीकी नदियां,
मिस्त्र के बेमिसाल पिरामिड
सभी को मैं चाहता हूं तुम्हारे लिए
सिर्फ़ तुम्हारे लिए
जैसे तुम्हें उनके लिए
मुझे माफ़ करना
अगर मैं शामिल नहीं
तुम्हारा झंडा लेकर
किसी भी दौड़ में
मुझे नहीं मालूम इसकी क्या परिभाषा है
जबकि मेरे रक्त में
सारी धरती एक हो जाती है
और मैं तुम्हें जीता हूं
एक चींटी की ख़ातिर,
झरते पत्तों के लिए
आकाश में उड़ती तुम्हारी धूल की परछाईयों में
पीछा करता हूं उन नदियों का
जो तुम्हें ले जाती हैं
अनंत जगहों की ओर
मैं तुम्हें देखता हूं लौटते हुए
उन थके हाथों में
जिन्होंने अभी सर रखा है
तुम्हारी गोद में
वे फिर उठेंगे तुम्हें अनंत बनाने के लिए
मुझे कहीं दिखाई नहीं देता
तुम्हारा मुख अकड़ा हुआ
जबकि हमने अभी मुंह धोया है
साथ चलने को .........
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हमारी विविध संस्कृति
तुम्हारा कुर्ता-पैजामा नहीं
यह हमारी ज़रूरत है कि हम
अपने गंजे सरों पर
हाथ लगाकर देखते हैं
बचे हुए बालों का सुनहरापन
मेरे प्यारे देश!
हमारी नपुंसकता की धरोहर हो तुम
जहां रक्तपान करते
हमने पाने से ज़्यादा खोया है तुम्हें
तुम अपने लिए कोई उम्मीद मत रखो
हमने तुम्हें परदे, नक़्शे,
झण्डे, बेकार के संभाषणों
नारों, नोटों के बण्डलों में
उतार दिया है
अब तुम्हारी भूमिका युद्ध-सी
नज़र आती है
जब तुम मुद्राओं की शक्ल में
उछाले जाते हो तो
मैं सोचता हूं
अब तुम्हें अपने लिए
नए रास्ते खोजने होंगे
यहां न सच किसी की ज़रूरत में है
न वे गिनतियां
जिन्हें हम भूल चुके हैं
तुम से शुरु करते हुए