मेरे प्यारे मित्र !
तुम्हारी आँखों में
अब भी
अतीत के संगी-साथी
झिलमिल-झिलमिल
कर उठते हैं
वे तुम्हें उद्वेलित करते हैं
तुम
कभी अकेले होकर
क्यों खो जाते हो
उन यादों में
जिनका मतलब
कविता से बाहर कुछ भी नहीं
लिखने की चाहत
अब भी तुममें शेष बची
कुछ करने की
इच्छाएँ
दम भरती हैं
यह इंगित है-
तुम ज़िन्दा हो!-
तुम ज़िन्दा हो!-
तुम नहीं अकेले
अब भी हो
तुम भावुकता के
अतल समन्दर में तिरते
निज मस्तक पर
लेकर अनुभव के
जगमग-जग मोती
कर सकते
कविता का मुख उज्ज्वल
तुम अनिल, अनल के
ज्वाल उठा सकते हो
धधका सकते अन्दर-बाहर
निज सपनों को
कर सकते साकार-
मेरे प्यारे मित्र!
बहा सकते हो आँसू दूसरों पर
कर सकते ख़ुद को न्योछावर
कुछ करने की
कर जाने की
जो चाह प्रबल
वह तुम्हें बचाए रक्खेगी
हरपल-हरपल!
(रचनाकाल :1997)