Last modified on 19 सितम्बर 2011, at 12:29

मेरे भीतर / ओम पुरोहित ‘कागद’


मेरे भीतर
एक बच्चा
एक युवा
एक जवान
... एक प्रोढ़
एक स्त्री भी है
स्त्री डरती है
बाकी मचलते हैँ
बुढ़ापे के जाल फैँक
मेरे भीतर को
कैद किया जाता है
इस जाल से भयभीत
मेरे भीतर के सभी
मेरा साथ छोड़ जाते हैँ
पासंग मेँ रहती है
एक स्त्री
जो हर पल
डरती रहती है !