मेरे श्रम का मोल यही है क्या?
तन का सुख मन की यह दुविधा
कहने को जो दी यह सुविधा
केवल टालमटोल नहीं है क्या?
मैं अनपढ़, दर की क्या जानूँ!
निभ पाउँ तो पूरी मानूँ;
काँटे का यह तोल सही है क्या?
मधु में भी जो विरह गुँजार,
रिमझिम में भी तृषित पुकारे,
तेरे मन का बोल यही है क्या?