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मेरे साजन हैं उस पार / शैलेन्द्र

ओ रे माँझी, ओ रे माँझी, ओ ओ ओ ओ मेरे माँझी
मेरे साजन हैं उस पार, मैं मन मार, हूँ इस पार
ओ मेरे माँझी अबकी बार, ले चल पार, ले चल पार
मेरे साजन हैं उस पार

मन की किताब से तुम मेरा नाम ही मिटा देना
गुण तो न था कोई भी अवगुण मेरे भुला देना
मुझे आज की विदा का, मरके भी रहता इंतज़ार
मेरे साजन हैं उस पार …

मत खेल जल जाएगी, कहती है आग मेरे मन की
मैं बंदिनी पिया की, मैं संगिनी हूँ साजन की
मेरा खींचती है आँचल, मनमीत तेरी हर पुकार
मेरे साजन हैं उस पार …

(फ़िल्म - बन्दिनी 1963)