डिबिया में रखी फूल-वेणी कुछ याद दिलाती है;
जो मिलन के क्षणों में केशों में मेरे लगाई थी तुमने।
अब भी महकती है उसी शिद्दत से, लहराती है-
घुँघराली एक लट- जो चेहरे से हटाई थी तुमने।
आज भी वही माला मेरे गले से लग मुस्काती है;
मुझे बड़े प्यार से निहारते हुए; पहनाई थी तुमने।
तुम्हारी आँखों में अपना अक्स देख लजाती है;
मेरी आँखों की हया जो धीरे से घटाई थी तुमने।
इन सबसे तुम्हें कुछ भी हासिल नहीं; बताती है-
मुझसे केवल शिकायत ; जो दी तन्हाई थी तुमने।
है मालूम, मेरे हमकदम! जो कली महकाती है;
इतिहास में दर्ज़ न होगी; जो खिलाई थी तुमने।