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मेला / रतन सिंह ढिल्लों

मेले में बिकती थीं कस्सियाँ
खेतों में पड़ी
दरारों को भरने के लिए
खेतों की प्यास बुझाने के लिए
अवरोधो को हटाने के लिए ।
 
मेले में बिकती थीं
हार, हमेले और पायल
बैलों और घोड़ियों को सजाने के लिए ।
 
अब मेले में बिकती है
राजनीति
लोगों में दरार डालने के लिए
और उनको
अलग-अलग खेमों में बाँटने के लिए ।
 
मेले लगाने वाले
आग लगा रहे हैं
और
बैल और घोड़ियाँ सजाने वाले
बंदूकें सजा रहे हैं ।
 
मूल पंजाबी से अनुवाद : अर्जुन निराला