कलकत्ते में खो गए लल्ला
कहीं अगाड़ी, कहीं पुछल्ला।
घर में बैठे वे चुपचाप
करते रामनाम का जाप।
भागे सुन मेले का हल्ला
कहीं अगाड़ी कहीं पुछल्ला।
कलकत्ते में खो गए लल्ला ।।
मेले में हाथी-घोड़े
थोड़े जोड़े, शेष निगोड़े।
इतनी भीड़ की अल्ला-अल्ला
कहीं अगाड़ी कहीं पुछल्ला।
कलकत्ते में खो गए लल्ला ।।
इधर तमाशा उधर रमाशा
रंग-बिरंगा शी-शी-शा-शा।
बहु बाज़ार औ’ आगरतल्ला
कहीं अगाड़ी कहीं पुछल्ला।
कलकत्ते में खो गए लल्ला ।।
चौरंगी पर खा नारंगी
चले बोलकर जय बजरंगी
हक्के-बक्के साथ न संगी
भूल गए मानिक तल्ला
कहीं अगाड़ी कहीं पुछल्ला।
कलकत्ते में खो गए लल्ला ।।
बाल-कवि योगेन्द्र कुमार लल्ला के लिए, जो बाल-पत्रिका ’मेला’ के सम्पादक थे।