Last modified on 24 जून 2016, at 12:09

मेहनतकश आदमी / प्रेमनन्दन

घबराता नहीं काम से
मेहनतकश आदमी,
वह घबराता है निठल्लेपन से।

बेरोज़गारी के दिनों को ख़ालीपन
कचोटता है उसको,
भरता है उदासी
रोज़ी-रोटी तलाश रही उसकी इच्छाओं में।

पेट की आग से ज्यादा तीव्र होती है
काम करने की भूख उसकी
क्योंकि भूख तो तभी मिटेगी
जब वह कमाएगा
नही तों क्या खाएगा।

सबसे ज़्यादा डरावने होते हैं
वे दिन
जब उसके पास
करने को कुछ नहीं होता।

रोज़ी-रोटी में सेंध मार रहीं मशीनें
सबसे बड़ी दुश्मन हैं उसकी
साहूकार, पुलिस और सरकार से
यहॉ तक कि भूख से भी
वह नहीं डरता उतना
जितना डरता है
मशीनों द्वारा अपना हक़ छीने जाने से ।

रोज़गार की तलाश में
वह शहर-शहर ठोकरे खाता है
हाड़तोड़ मेहनत करता है
पर मशीनों की मार से
अपनी रोज़ी-रोटी नहीं बचा पाता,
तब वह बहुत घबराता है ।