मैंने उसके नाम
जितने गीत लिखे थे
उसने सभी नकार दिए हैं
उसने नकार दिया है
उन गीतों में अपने वजूद को
अपनी मौजूदगी को
अपने किसी भी अहसास को
उसे नहीं है याद
वो लवबर्ड का जोड़ा
जो बहुत प्यार से उसने सजाया था
मेरी अलमारी में
और उसे नहीं है याद वो रक्षा सूत्र
जो उसने मुझे
और मैंने उसको पहनाया था
उसने नहीं है याद वो सोलह रूपए जो
जबर्दस्ती उसने दिए थे समोसे वाले को
ये जानकार कि
मेरी जेब खाली है
उसने नकार दिया है
अपने माथे पर लगी उस चोट को
जो मेरे ख्याल में ग़ुम रहने पर
खंबे से टकराने पर लगी थी उसे
उसने नकार दिया है
अपनी उँगलियों के पोरों पर
मेरी इकलौती छुवन को भी
और न जाने क्या क्या
नकार दिया उसने
धुल गया है सब कुछ उसके दिल से
और दिमाग से
और मैं नहीं भूल सका कुछ भी
इसलिए मैं उसका नकार स्वीकार नहीं कर सकता
और उसके नकार पर एतराज करता हूँ
नकारता हूँ उसके नकार को
पूरी शिद्दत से
कहीं मैं उस वो विशुद्ध पुरुषवादी सोच का ही
हिस्सा तो नहीं
जो स्त्री को नकार की इज़ाज़त नहीं देता