मैंने एक बनाई चिड़िया
नन्हे-से उसके पर,
फिर चिड़िया का एक बनाया
अलबेला, प्यारा घर।
वह घर पत्तों का घर था जी
हरा-भरा-सा सुंदर,
उसमें सुख झरता रहता था
झर-झर, झर-झर, झर-झर।
चिड़िया-चिड़ा और दो बच्चे
छोटा-सा संसार,
वहाँ फूटते गीत हवा के
वहाँ छलकता प्यार।
छोटे-से घर में थीं इतनी
ढेर-ढेर-सी खुशियाँ,
खिल-खिल पेड़ हँसा करता था
पुलकित सारी दुनिया।
सोच रहा हूँ, पंख खोलकर
अगर उड़ें ये बच्चे,
चिड़िया कितनी खुश होगी तब
खुश होंगे ये बच्चे।
गाएँगे वे गीत, अजब-सी
होगी जिनकी भाषा,
चित्र बनाऊँगा तब मैं भी
बिल्कुल नया-नया-सा।