मैंने जो बात कही थी कभी बरसों पहले
चाहता हूँ कि मेरा दिल वही फिर से कह ले
प्यार इक लफ्ज़ है मानी है समंदर जैसा
और लफ्ज़ों से कोई शख़्स कहाँ तक बह ले
डूबना है तो फिर दरया कि समंदर क्या है
हाँ, ज़रूरी है मिले ख़ुद से इज़ाज़त पहले
लहरें आती हैं मेरे पाँव भिगो जाती हैं
और कहती हैं मेरे साथ में तू भी रह ले
वक़्त क़े खेल-तमाशों को बूझिए साहब
ताकि सहने न पड़ें नहलों पे झूठे दहले
ये जो कुछ लोग चले जाते हैं चेहरे ले कर
तू तो इंसान है 'शतदल' इन्हें हँस कर सह ले