मैंने मान ली तब हार!
पूर्ण कर विश्वास जिसपर,
हाथ मैं जिसका पकड़कर,
था चला, जब शत्रु बन बैठा हृदय का गीत,
मैंने मान ली तब हार!
विश्व ने बातें चतुर कर,
चित्त जब उसका लिया हर,
मैं रिझा जिसको न पाया गा सरल मधुगीत,
मैंने मान ली तब हार!
विश्व ने कंचन दिखाकर
कर लिया अधिकार उसपर,
मैं जिसे निज प्राण देकर भी न पाया जीत,
मैंने मान ली तब हार!