मैं कहती रही
तुम बहते रहे
कगार ढहते रहे
मैं पीती रही
अंजुरी भर-भर.
तुम कहने लगे
मैं बहने लगी
तुम सरकने लगे
तुम भगने लगे
मैं बिफरती रही
मैं बिखरती रही
सचमुच.
मैं कहती रही
तुम बहते रहे
कगार ढहते रहे
मैं पीती रही
अंजुरी भर-भर.
तुम कहने लगे
मैं बहने लगी
तुम सरकने लगे
तुम भगने लगे
मैं बिफरती रही
मैं बिखरती रही
सचमुच.