मैं
जीवन की इस नदिया में
पत्थर सा पड़ा हूँ
हज़ार पत्थरों के संग
हर पल हर दम
बहता हूँ
एक लम्बी यात्रा में रहता हूँ
कभी पानी की तीव्र धार
ले जाती है अपने संग
और कभी तट के साथ
पटक कर चली जाती है जलधार
अंतहीन इस पीड़ा यात्रा में
मैं अंश-अंश पिघल रहा हूँ
पानी में डूब कर
रख रहा हूँ अपना पानी
और कर रहा हूँ निर्माण
अपने ही ‘मैं’ का।