राग सारंग
मैं अपनी सब गाइ चरैहौं ।
प्रात होत बल कैं सँग जैहौं, तेरे कहें न रैहौं ॥
ग्वाल-बाल गाइन के भीतर, नैंकहु डर नहिं लागत ।
आजु न सोवौं नंद-दुहाई, रैनि रहौंगौ जागत ॥
और ग्वाल सब गाइ चरैहैं मैं घर बैठौ रेहौं ?
सूर स्याम तुम सोइ रहौ अब, प्रात जान मैं दैंहौं ॥
भावार्थ :-- (श्यामसुन्दर माता से कहते हैं-) `मैं अपनी सब गायें चराऊँगा । सबेरा होने पर दाऊ दादा के साथ जाऊँगा, तेरे कहने से (घर) नहीं रहूँगा । ग्वालबालकों तथा गायों के बीच में रहने से मुझे तनिक भी भय नहीं लगता है । नन्दबाबा की शपथ ! आज (मैं) सोऊँगा नहीं, रातभर जागता रहूँगा । दूसरे गोपबालक तो गाय चरायेंगे और मैं घर बैठा रहूँ ?' सूरदास जी कहते हैं,(माता बोलीं-)श्याम, अब तुम सो रहो, सबेरे मैं तुम्हें जाने दूँगी ।'