मैं न तो हिन्दू और ना ही मुसलमान हँ
इस देश का वासी एक सच्चा इंसान हूँ
जाति नहीं देखता मैं धर्म नहीं देखता
बस मैं इंसानियत का, करता गुणगान हूँ
जहाँ भी गया मैं अछूत ही बना रहा
मुझे मालूम है मैं कितना परेशान हूँ
कौन सी जगह जहाँ, प्यार मुझे मिल सके
किसी भी मजहब में जाके बेनाम हूँ
ऊंच और नीच की दुकाने चारों ओर हैं
मैं बिकता हूँ जिनके घर बनता समान हूँ
किस्मत पर भरोसा मैं करता नहीं कभी
मैं खुद का इंसान और खुद का भगवान हूँ
जो मेरी जाति थी वो कभी न बदल सकी
इन धर्मों में जाकर मैं कितना हैरान हूँ
हिंदू मुसलमान ईसाई मैं नीच जाति का
सिक्ख में भी रहकर मैं सबके समान हूँ
मैं मज़लूम हूँ यहाँ पर, व्यवस्था का मारा हूँ
विद्वान होकर ना, कहलाता महान हूँ