मैं उसके इतनी क़रीब हूँ कि उसके सपनों में नहीं आ सकती।
उसके ऊपर से उड़ान नहीं भर सकती, उससे बचकर किसी
पेड़ की जड़ों में नहीं छुप सकती। इतनी क़रीब हूँ।
जाल में फँसी मछली का संगीत मेरे गले में नहीं,
न मेरी उँगली में से फिसलती है कोई अँगूठी।
इतनी क़रीब हूँ। एक घर में आग लगी है
मेरे बग़ैर, और वह मदद के लिए पुकार रहा है।
इतनी क़रीब हूँ
मेरे बालों मैं लटकती घंटी कि बज नहीं सकती।
मैं वो मेहमान नहीं हो सकती कि जिसके घुसते ही
दीवारे स्वागत में दरवाज़ों की तरह खुलने लगें, इतनी क़रीब हूँ।
आइन्दा कभी इतनी ख़ामोशी से इतने हल्के से,
शरीर के इतना परे जाकर, इतनी लापरवाही से नहीं मरूँगी
जितना एक बार उसके सपने में मरी थी। इतनी क़रीब हूँ,
इतनी क़रीब। मैं आवाज़ को चख सकती हूँ, मैं इस
शब्द के चमकदार भूसे को देख रही हूँ,
उसकी बांहों में निस्पंद पड़े पड़े।
वह सो रहा है,
और नींद में उस लड़की के ज़्यादा पास है जिसे उसने
फ़क़त एक बार देखा है, सिर्फ़ एक शेर वाले घुमन्तू सर्कस की
उस कैशियर लड़की के वह कहीं ज़्यादा क़रीब है —
मेरे मुक़ाबले, मैं
जो उसके बग़ल ही में हूँ।
उस लड़की के लिए उसके भीतर एक सब्ज़ घाटी उग रही है,
लाल-लाल-सी पत्तियों वाले दरख़्तों से भरी, गहरी नीली हवा में
एक बर्फ़ीले पहाड़ से घिरी हुई। मैं उसके इतनी क़रीब हूँ
कि उसके लिए आकस्मिक वरदान नहीं हो सकती।
और मेरी चीख़ से उल्टे
वह जाग पड़ेगा। मैं बिल्कुल
असहाय, अपनी आकृति में क़ैद,
मैं जो कभी हुआ करती थी एक बलूत, एक गिरगिट,
जो अपने केंचुल से निकलती थी
अपनी त्वचाओं के सारे रंगों को झमकाती हुई। जिसे कभी
हैरान आँखों से बड़े सलीक़े से ग़ायब हो जाना आता था
और वह सलीक़ा ही सबसे बड़ी दौलत थी। इतनी क़रीब हूँ,
उसके इतनी क़रीब हूँ कि वह वह मुझे ख़्वाब में नहीं देख सकता।
मैं हटाती हूँ उस सोते हुए मानुष के सर के नीचे से अपनी बाँह,
वह सुन्न पड़ी हुई है, हज़ारों सुइयाँ सी उसमें चुभती हैं।
हर सुई की नोक पर बैठा है, गिने जाने को बेताब,
एक लांछित फ़रिश्ता।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : असद ज़ैदी