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मैं और तुम / नीरजा हेमेन्द्र

मैं और तुम
नीले आकाश में उड़ते हुए
बादल के दो टुकड़ों की तरह हैं
जिनका अलग-अलग दिखना सिर्फ छलावा है
ये मिलेंगे जरूर
चाहे इनका अस्तित्व मिट जाये
मैं और तुम
दुनिया के आबो-हवा के थपेड़ों से
 जुदा हो कर
एक समुज्ज्वल झील के समान
हो गये हैं
जिसके ऊपर चलने वाली नाव
सिर्फ/ झील की ऊपरी सतह को
देख पाती है
छू पाती है।