जेठ की
चिलचिलाती धूप में
नंगे सिर थी मैं
और
हवा पर सवार
बादल की छाँह से तुम
भागते रहे निरन्तर
तुम्हारे ठहरने की उम्मीद में
मैं भी भागती रही
तुम्हारे पीछे
और पिछड़ती रही
हर बार...।
जेठ की
चिलचिलाती धूप में
नंगे सिर थी मैं
और
हवा पर सवार
बादल की छाँह से तुम
भागते रहे निरन्तर
तुम्हारे ठहरने की उम्मीद में
मैं भी भागती रही
तुम्हारे पीछे
और पिछड़ती रही
हर बार...।