(प्रिय मित्र राजेन्द्र तायल के नाम)
मित्र,
जब भी तुम सुनते हो
मेरी कविता
तभी कहते हो-
मैं ऐसा क्यों लिखता हूँ
वैसा क्यों नहीं लिखता
जैसा तुम बताते हो|
मित्र,
यदि मैं वैसा लिखूँगा
जैसा तुम बताते हो
तब मैं-
मैं कहाँ रहूँगा
तुम हो जाऊँगा
कविता के पन्नों से
गुम हो जाऊँगा|