बीन-छान कर
जाने कितनी बार
धूप में सुखा दिये हैं।
फिर भी गीले रह जाते हैं
यहाँ वहाँ से
शायद अब भी कच्चे हैं ये।
एक बार और
फिर से
उलट पलट लूँ शब्दों को
जो एक दिन
मैं कह दूँगी तुमसे
बीन-छान कर
जाने कितनी बार
धूप में सुखा दिये हैं।
फिर भी गीले रह जाते हैं
यहाँ वहाँ से
शायद अब भी कच्चे हैं ये।
एक बार और
फिर से
उलट पलट लूँ शब्दों को
जो एक दिन
मैं कह दूँगी तुमसे